Saturday, September 13, 2008

हिन्दी-दिवस

सभी को हिन्दी-दिवस की पूर्व संध्या पर शुभकामनाएँ। खूब प्रयोग करें अपनी-अपनी मातृभाषा का, प्रयोग होने वाली भाषाएँ मर जाती हैं। संकल्प लें की अपनी भाषा को जीवित रखेंगे। इस अवसर पर किसी कवि की यह कविता भी प्रासंगिक है.
मैं युग्म, तुम्हारी भाषा का,
हिन्दी की धूमिल आशा का ;
मैं युग्म , एकता की संभव
हर ताकत की परिभाषा का

मैं आज फ़लक पर बिछी हुई
काई पिघलाने आया हूँ
भारत की बरसों से सोई
आवाज़ जगाने आया हूँ

तुम देख तिमिर मत घबराओ
हम दीप जलाने वाले हैं
बस साथ हमारे हो लो, हम
सूरज पिघलाने वाले हैं

मैं एक नहीं हूँ , मैं हम हैं
माना , अपनी गिनती कम है
तुम उँगली गिन मत घबराओ
हममें भी मुट्ठी सा दम है

हाँ बहुत कठिन होगा लिखना
पत्थर पर अपने नामों को
होगा थोड़ा मुशकिल करना
अनहोनी लगते कामों को

पर वही सफ़ल होता है जो
चलने की हिम्मत रखता है
गिरता है, घायल होता है
पर फ़िर आगे हो बढ़ता है

हममें है हिम्मत बढ़ने की
तूफ़ान चीरकर चलने की
चट्टानों से टकराने की
गिरने पर फ़िर उठ जाने की

देकर अपनी आवाज़ सखे !
तुम भी अपने संग चलते हो?
तुम भी हो हिन्दी के सपूत
उसका संबल बन सकते हो

हिन्दी को उसका हम समुचित
सम्मान दिलाने आये हैं
हम पूत आज अपनी माता का
कर्ज चुकाने आये हैं

हिन्दी की कोमलता को हमने
समझा है, ताकत को भी
उसकी फ़र्राटे सी तेजी को
देखा है , आहट को भी

बतला दें अपनी बाधाओं को
हममें भी है धार बड़ी
होठों पर है मुसकान खिली
हाथों में है तलवार बड़ी

मैं युग्म आज फ़िर परशुराम -सा
यह संकल्प उठाता हूँ
अम्बर ! खाली कर जगह जरा
मैं सूरज नया उगाता हूँ

मैं युग्म , चाहता हूँ धरती पर
नहीं कहीं मतभेद रहे,
ऊँचाई का, गहराई का
धरती पर कोई भेद रहे

मैं युग्म, आदमी की सुन्दर
भावना जगाने आया हूँ
मैं युग्म, हिन्द के मस्तक को
कुछ और सजाने आया हूँ

मैं युग्म हिन्द की अभिलाषा का
छोटा सा कोना भर हूँ
तुम एक पुष्प बस दे जाओ
मैं भारत का दोना भर दूँ

3 comments:

priya said...

nice work guys...

and vivek,the post is great!
keep up the good work..
sonal

Unknown said...

fantastic,Rapcheik.Jhakas
Brother
Harsh(7 sem,EC)

WAYS said...

Thank you very much to all of youo for appreciating our new work
Regards:
vivek