Wednesday, October 1, 2008

सवाल इंजीनियरिंग का है

ओशो कहते हैं -'' प्रेम में ऐसे डुबो की मिट जाओ. फिर बस प्रेम ही प्रेम रहे तुम कहीं रहो.'' जिसने सच में ऐसा प्रेम किया हो वो इस मिटने का मज़ा भी जानता होगा . प्रेम मिटाकर भी बहुत कुछ दे जाता है. Bashir Badra का शेर याद रहा है

चाँद चेहरा जुल्फ दरिया बात खुशबु दिल चमन

एक तुम्हे देकर खुदा ने दे दिया क्या क्या मुझे

प्रेमी तो पाते ही है, कई बार दुनिया भी कुछ अनमोल पा जाती है.

मशहूर चित्रकार, कवि और दार्शनिक खलील जिब्रान ने भी कुछ ऐसे ही डूबकर प्रेम किया था . प्रेमिका की अचानक हुयी मौत ने उन्हें तोडा ज़रूर, मगर उनका प्रेम अपनी सारी पवित्रता के साथ उनके दिल में हमेशा ज़िंदा रहा. ये प्रेम ताउम्र उन्हें जलाता रहा, लेकिन इसी आग की रौशनी ने दुनिया को THE PROPHET जैसी महानतम किताब और कई श्रेष्ठ कला कृतियाँ उपहार में दी.

‘जिसने खुद को बचाया वो मिट गया, और जो मिट गया उसने जिंदगी पा ली.'

बात सिर्फ स्त्री पुरुष प्रेम की नहीं है . किसी भी चीज़ से ऐसे डूब कर किया गया प्रेम अक्सर कुछ अद्भुत दे जाता है. दुनिया की हर महान क्रिएशन के पीछे किसी के डूबने और खुद को दांव पर लगाने की कहानी छुपी है.

खुशवंत सिंह ने लिखने के जूनून के कारन IFS की नौकरी छोड़ी और लन्दन से वापस दिल्ली गए. घर वालो, दोस्तों और दुसरे लोगो के तानों से परेशान होकर उन्होंने भोपाल का रुख किया और झील के किनारे बैठकर 'ट्रेन टू पाकिस्तान ' जैसी यादगार किताब लिखी.

डूबकर पाने की बात हर जगह लागु होती है. इंजीनियरिंग पर भी.

इंजीनियरिंग, जो कल्पना की असीमित उड़ान और इस उड़ान को हकीकत में बदलने की क्षमता का नाम है.

इंजीनियरिंग, जो सारी सीमाओं को तोड़कर असंभव शब्द को चुनौती देने वाला विश्वास है.

इंजीनियरिंग जो एक आर्ट है , आर्ट जो महान रचनाये गढ़कर जिंदगी को मुस्कुराने का मौका देता है.

लेकिन दूसरी चीजों की तरह इंजीनियरिंग में भी तभी कुछ नया किया और पाया जा सकता है, जब उसकी अनंत गहराइयो में उतरने का साहस किया जाये. मुज़फ्फर रज़मी लिखते है-

'इस राज़ को क्या जानेंगे साहिल के तमाशाई

हम डूब के समझे हैं दरिया तेरी गहराई

जब तक कोई सतह पर है, उसके पास सिर्फ खाली आकाश है .और मुझे लगता है की आज हम (इस हम में मैं और आप शामिल है) सिर्फ सतह पर भटक रहे है . सतही ज्ञान अच्छे नम्बरों के साथ इंजीनियरिंग का आवरण भले ही दिलवा दे , मगर इससे इंजीनियरिंग कोई भला नहीं हो सकता.

जिस तरीके से डीप प्रैक्टिकल नॉलेज और नयी सोच की उपेक्षा कर सिर्फ एक्जाम पास करने को सब कुछ माना जा रहा है, वो एक इंजिनियर की क्रिएटिव एबिलिटी को सीधे तौर पर नुकसान पहुँचाने वाला काम है.

ये बहुत बड़ा सवाल है की हम सिर्फ इंजीनियरिंग के आवरण से संतुष्ट है , या एक आर्टिस्ट की तरह पुरे प्रेम, समर्पण और निष्ठा के साथ इसके नाम को सार्थक करने वाले है.

सोचना हमारी ज़िम्मेदारी है , क्यूंकि इस सवाल के साथ हमारी पहचान और प्रतिष्ठा जुडी है.

                  -- आदर्श रंगारे

                    BE III YEAR

                    BRANCH EX

2 comments:

Unknown said...

Awesome buddy...purely awesome...hats off...we want more such articles for our blog.

WAYS said...

आदर्श जी बस दो पंक्तियों में आपने विचारों प्रस्तुत करना चाहूँगा
की -
मुश्किलें दिल के इरादे आजमाती हैं वक्त के परदे निगाहों से हटाती हैं
होंशला मत हार गिर-कर वो मुशफिर ठोकरें इन्शान को चलना सिखाती हैं